एक समय की बात है। चाणक्य अपमान भुला नहीं पा रहे थे। शिखा की
खुली गांठ हर पल एहसास कराती कि धनानंद के राज्य को शीघ्राति शीघ्र नष्ट करना है।
चंद्रगुप्त के रूप में एक ऐसा होनहार शिष्य उन्हें मिला था जिसको उन्होंने बचपन से
ही मनोयोग पूर्वक तैयार किया था।