अपने आप को पहचानों

आज के युग में जरूरत है अपने आपको पहचानने की। इसके लिए जरूरत है आपको अपने अंदर आत्‍मविश्‍वास जगाने की। मैं भी कुछ हूँ और जिंदगी में मै भी कुछ प्राप्‍त कर सकता हूँ, ये भावना अपने अंदर होनी जरूरी है। अपने अंदर जो गुण छुपे हुए हैं उनका विकास किजिए,
एक बार की असफलता से निराश मत होईए, उल्‍टा आत्‍मविश्‍वास से दुबारा कदम उठाईए। आपके अंदर की कमी के कारण कोई आपको नीचे देख रहा है, तो उसकी बातों में आकर अपने आत्‍मकवि‍श्‍वास को मत गमाईए। उसको अपनी काबिलिएत से जवाब दिजिए। आपके अंदर कुछ कमी है, इसलिए अपनी जिंदगी का कोई उपयोग नहीं ये मत सम‍झिए, क्‍योंकि कोई भी व्‍यक्ति सब तरह से पूर्ण नहीं होता, हर एक में कुछ खास होता है और कुछ कमी होती है।

आज के युग में हर व्‍यक्ति पैसे के पीछे भाग रहा है। कोई इंजिनीयरींग (अभियांत्रिकी) सीख कर अच्‍छी कंपनी में काम करना चाहता है तो कोई डॉक्‍टारी (वैद्यकीय) काम सीख रहा है। यह अच्‍छी बात है के आज पैसे की जरूरत सबको है। हर वस्‍तु मंहगी हो गई है। लेकिन क्‍या कोई यह सोच रहा कि पैसे की दौड में इंसान अपनी इंसानियत भुलता जा रहा है। बहुत से लोग काम करने विदेश जाते हैं, पर अपने देश और अपने लोगों, देशवासियों के बारे में कोई नहीं सोचता। लेकिन गौर करने युक्‍त बात यह है कि लोग विदेश में कुछ साल बिताने के बाद वापस अपने देश लौट आते हैं। पुछने पर कहते हैं काम करने और पैसा कमाने के लिए विदेश ठीक है, पर रहने के लिए तो अपना देश ही ठीक है। क्‍यों भाई क्‍या हुआ? इसका सबसे बड़ा कारण है, वहॉं की व्‍यवहारिकता, भ्रष्‍टाचार मुक्‍त वातावरण। लेकिन इंसानियत वहॉं नहीं है।

अब अपने ही देश के बारे में लिजिए –

उत्तर हिन्‍दुस्‍थान से मध्‍य हिन्‍दुस्‍थान तक जहॉं कूट-कूट कर लोगों में दूसरों की मदत करने की भावना है, वहीं देश के दूसरे भागों में नहीं है। मैंने अपना अधिकतर समय उत्तर हिन्‍दुस्‍थान (दिल्‍ली) में गुजारा है। वहॉं के लोग घर आए दुश्‍मन की भी आव-भगत करते हैं। प्‍यासे को पानी पिलाना तो बहुत पूण्‍य का काम समझते हैं। और बाकी हिन्‍दुस्‍थान के भागों का क्‍या कहना, देख कर अनजान बनना, घर के सामने कोई दिख जाए तो दरवाजा ही बंद कर लेते हैं। जैसे उनके घर से कोई कुछ मांग कर ले जाएगा। रूकिए यह बात मैं 90% लोगों की कर रहा हूँ। कुछ लोग तो सब जगह अच्‍छे होते हैं, तभी तो दुनिया चल रही है।

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